बदलते शहरों के नाम
चुनावी सरगर्मी में बदलते शहरों के नाम, क्या औरंगाबाद का नाम साम्भाजी नगर कर पाएगी शिवसेना ?

देश की तात्कालिक राजनीति के अनुसार हिंदुत्व का सबूत तब ही दिया जा सकता है जब दूसरे धर्म को नीचा

दिखाया जाए उसके बिना आप एक हिंदू कैसे हो सकते है। इस विचारधारा के साथ तात्कालिक चुनाव में वोट

बटोरती सभी राजनीतिक पार्टी अक्सर ऐसा करती हुई दिखती है। ऐसा नहीं है की ये विचारधारा बस हिंदू नेताओ

की होती है ऐसी विचारधारा आपको हर अतिवादी नेताओ में देखने को मिल जाएगी चाहे वो हिंदू हो या मुस्लिम।

अभी तक देश में चल रही दक्षिणपंथी विचारधारा की लहर जो अपने विचारों में बदलाव से ज़्यादा स्थाईवाद

पर ज़्यादा यक़ीन रखती है जो परम्परागत संस्कृति देश की हुआ करती थी उसको स्थाई करने में ज़्यादा बल देती है

भले ही उस से अन्य सम्प्रदाय की भावनाओं को नुक़सान पहुँचे इस से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।

किसी भी सम्प्रदाय में कही भी ये नहीं कहा जाता की अन्य सम्प्रदाय को नीचा दिखाना उचित कार्य होता है।

परंतु अपने तुच्छ लाभ के लिए लोगों के मन में जो बैर पैदा करती ये तात्कालिक राजनीतिक पार्टियाँ इनसे

ज़्यादा नुक़सान देश के आधारभूत ढाँचे में और कौन पहुँचा सकता है।

देश में 2014 के बाद कितने शहरों का नाम परिवर्तित कर दिया गया है

आपने ये तो पढ़ा ही होगा फ़िलहाल अभी हम बात करने जा रहे है औरंगाबाद की जो महाराष्ट्र

राज्य के मराठवाड़ा क्षेत्र का ऐतिहासिक शहर है। जिसका नाम साम्भाजी नगर करने की हवा चल रही है।

जिस के ऊपर अनेको राजाओं ने शासन किया और अपने अनुरूप शहर को बसाया और उसका नाम परिवर्तित किया।

औरंगाबाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर एक नज़र

100 ई.पू. से 200 ई. तक इस शहर में सातवाहन साम्राज्य ने भली प्रकार शासन किया

उस वक़्त इस शहर को पैठन के नाम से जाना जाता था। उसके बाद 9वीं ई से 14वीं ई. तक यादवों ने

इस शहर में राज किया उस वक़्त इसे देवगिरी के नाम से जाना गया। सन 1308 में इस शहर में ख़िलजी

ने हमला किया और इसका नाम बदलकर दौलताबाद कर दिया। मुहम्मदबिन तुग़लक़ ने यहाँ 1327 ई. से 1334 ई.

तक राज किया उस दौरान तुग़लक़ ने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद स्थान्तरित कर दी थी।

सन 1499 में दौलतबाद अहमदनगर सल्तनत के अधीन आया फिर 1699 में मलिक अम्बर जो की एक ईथिओपिया

का ग़ुलाम था उसने इस शहर में राज किया आश्चर्य की बात है किसी और देश के ग़ुलाम ने भी इस शहर में राज

किया राज करने के अलावा उसने नया शहर भी बसाया। मलिक अम्बर के बाद उसका बेटा जिसने इस शहर का

नाम फ़तेहनगर किया। इन छोटे और कम शक्तिशाली लोगों के बाद अब मुग़ल सल्तनत का प्रवेश होता है जिसमें

शाहजहाँ द्वारा इस शहर पर क़ब्ज़ा किया गया सन 1636 में इसके बाद 1653 में औरंगजेब ने इस शहर

को अपने नाम से पुकारा और इसका नाम औरंगाबाद पड़ा।

इसी शहर में औरंगजेब ने 17 वीं शताब्दी में छत्रपति साम्भाजी महाराज जो की मराठाओं के राजा

हुआ करते थे उनसे तकरार के दौरान उनको क़ैद किया और उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित

किया जिसके कारण उनकी 1680 में मृत्यु हो गई। इसी समय से ये माँग उठ रही है

की इस शहर का नाम साम्भाजी नगर किया जाए तबसे लेकर अब तक इस पर भली प्रकार

से राजनेताओ ने अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेकीं है और अभी भी सेंक रहे है।

1724 में आसफ़जाह जो की मुग़ल सल्तनत का गवर्नर था उस ने मुग़ल सल्तनत से बग़ावत

की और 1763 में हैदराबाद में अपनी राजधानी बना ली। 1956 तक औरंगाबाद हैदेराबाद

राज्य के अंदर आता था फिर 1960 में औरंगाबाद महाराष्ट्र राज्य में जोड़ा गया।

असली आधुनिक भारत की कहानी 1980 से शुरू होती है

जब शिवसेना अपनी क्षेत्रीय पार्टी का टैग हटाने के लिए महाराष्ट्र के अन्य शहरों में जाकर हिंदुत्व का प्रचार क़रने लगी।

1988 में होने वाले क्षेत्रीय चुनाव प्राचार के केम्पेन में शिवसेना अध्यक्ष बाला साहेब ठाकरे औरंगाबाद

का नाम साम्भाजीनगर करने का वादा जनता के समक्ष कर चुके थे। पिछले 32 सालों से शिवसेना

के सभी नेता औरंगाबाद को साम्भाजी नगर के नाम से पुकारते है

शिवसेना के स्वयं के अख़बार सामना में भी वो यही नाम इस्तेमाल करते है।

1955 औरंगाबाद नगर निगम ने रेजोल्यूशन पास किया जिसमें शहर का नाम साम्भा जी नगर करना था

उस वक़्त बीजेपी और शिवसेना प्रदेश में सत्ता चला रहे थे ।

तभी कांग्रेस के एक नेता मुश्ताक़ अहमद ने बम्बई हाईकोर्ट में चुनौती दी और इस पर रोक लगवा दी।

तब से लेकर अभी तक ये एक विरोधाभास मुद्दा बना हुआ है।

शिवसेना ने वर्तमान में कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई है

जिस पर बीजेपी को बहाना मिल गया है कि क्या अब शिवसेना अपने पिता के शब्दों को ठुकरा रही है

या सत्ता का लालच उन्हें उनका स्वाभिमान भुला रहा है। आपको बताना चाहेंगे ये आवाज़ सिर्फ़ इसीलिए उठ रही है

क्यू की अभी महाराष्ट्र में 15 जनवरी से स्थानीय ग्रामपंचायत के चुनाव होने है और बहुत जल्द नगर निगम के चुनाव

होने वाले है इसमें बीजेपी अपना शुद्ध हिंदू कार्ड फेकने के प्रयास में है और इस मुद्दे को हवा दे रही है

जिस से बीजेपी को पूरा लाभ भी मिल सकता है। अभी औरंगाबाद की स्थिति जाने तो

यहाँ पर 51% हिंदू और 30% मुस्लिम जनसंख्या है जिस पर बीजेपी की नज़र है।

2020 में औरंगाबाद एयरपोर्ट का नाम बदल कर साम्भाजी करने का प्रस्ताव शिवसेना ने दिया था

जो अभी तक केंद्र में अटका है बीजेपी चाहती है ते नाम परिवर्तन उनके शासन काल में हो बीजेपी

कोई भी मौक़ा गँवाना नहीं छोड़ती ख़ुद को हिंदू पार्टी बताने का।

औरंगाबाद का नाम बदलने के ऊपर कोंग्रेस का कहना है

ये कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है

विकास के कार्यों पर बात होनी चाहिए जो ज़रूरी है जबकि एनसीपी इस मुद्दे पर चुप्पी साधते नज़र आ रही है।

विकास के कार्यों को अनदेखा कर जनता को इन मुद्दों में उलझा कर वोट बटोरते राजनेता भी उन्ही राजाओं

की तरह है जिन्होंने इस शहर का नाम बदला अब से 50 साल बादक भी इन नेताओ को इन्हीं राजाओं की

तरह ही देखा जाएगा और इनका नाम भी इसी श्रेणी में जोड़ा जाएगा। देश में कार्य करने के लिए जैसे मुद्दे

कम पड़ गए जो अब राजनेता इन सब में वोट बटोर रहे है। शिक्षा नौकरी विकास के मुद्दे धूमिल हो जाते है

चुनाव के दौरान और जनता को इन सब में उलझा दिया जाता है चुनाव होते ही फिर जब जनता ज़मीन

पर आती है तो उन्हें अहसास होता है की उनके साथ छल हुआ है।

आप सभी अपने विवेक से निर्णय ले किसी को भी वोट विकास के मुद्दे के आधार पर दे ना की धर्म

और सम्प्रदाय की बात करने वाले ढोंगी राजनेताओ को।

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