मप्र लगातार 15 सालों से टॉप पर

भोपाल – शिशुओं की मृत्यु दर के मामले में मध्यप्रदेश एक बार फिर देश में सबसे ज्यादा शर्मनाक स्थिति में है।

इस मामले में बीते 15 सालों से लगातार मध्यप्रदेश टॉप पर बने हुए हैं। यह सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सूचकांक में से एक होता है। केंद्र सरकार द्वारा शुक्रवार को जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम(एसआरएस) की साल 2017 की रिपोर्ट में सामने आया है कि प्रदेश में एक हजार में से 47 बच्चे जन्म के बाद एक साल तक जीवित नहीं रह पाते हैं। रिपोर्ट ने प्रदेश में गर्भवती महिलाओं और शिशुओं को लेकर सरकार द्वारा किए गए सभी प्रयासों को खोकला साबित किया है। बता दें कि बीते 15 सालों से भारत में शिशु मृत्यु दर मप्र में सबसे ज्यादा बनी हुई है।

ताजा रिपोर्ट के मुताबिक मप्र के शहरों में शिशु मृत्यु दर 32 है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 51 दर्ज की गई है।

रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात यह है कि बेटियों के मुकाबले बेटों की मृत्यु दर ज्यादा है। गौरतलब है कि शिशु मृत्यु की दर मप्र में सबसे ज्यादा होने से यह साबित होता है कि प्रदेश में गर्भवती महिलाओं और बच्चों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा और पोषण आहार नहीं मिल पा रहा है। शिशु मृत्यु दर के मामले में मप्र के बाद असम, उड़ीसा जैसे राज्य आते हैं।रिपोर्ट के मुताबिक मप्र में हर साल जन्में 1000 मेल शिशुओं में से 48 की मौत एक साल के भीतर हो जाती है। फीमेल शिशु में यह दर 45 है। साल 2014 की रिपोर्ट में यह दर क्रमशः 51 व 53 थी।

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