सपाक्स
सपाक्स समाज अधिक खरीदी कर देशहित में न्यायालय का सम्मान व अपने हितों की रक्षा करे
बालाघाट
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 20 मार्च 2018 को अपने एक अहम निर्णय में ‘एट्रोसिटी’ अधिनियम में किसी शिकायत पर आरोपी को बगैर जाँच किये गिरफ्तार कर जेल भेजने को असंगत ठहराया और शासकीय कर्मी के प्रकरण में गिरफ्तारी पूर्व वरिष्ठ अधिकारी की अनुमति की बाध्यता स्थापित कर दी। इस निर्णय के बाद से ही इस मुद्दे पर राजनीति गर्म है। सभी राजनीतिक दल जिस संविधान की दिन रात दुहाई देते हैं, उसकी व्याख्या भी वैसी चाहते हैं जो उन्हें रास आये। संविधान व्याख्या हेतु सर्वमान्य और अधिकृत माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने बिना तथ्यों को परखे निर्णय नहीं दिया है, स्वयं सरकारी आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि इस कानून का निरंतर दुरुपयोग हुआ है।
सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था (सपाक्स) के जिला अध्यक्ष श्री डॉ लिल्हारे ,जीतेन्द्र मोहरे श्री डॉ नेमा और श्री राजेश वर्मा ने बताया कि निहित स्वार्थों के लिये जो वातावरण राजनीतिक दलों ने उत्पन्न किया उसी की परिणति है कि 2 अप्रैल को निर्णय के विरोध में भारत बंद का आव्हान अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग ने किया है। माननीय न्यायालय के निर्णय पर कानूनन अभी पुनर्विचार का रास्ता है, एेसे में भारत बंद का रास्ता न सिर्फ असंवैधानिक है बल्कि माननीय न्यायालय की अवमानना भी है।
सपाक्स इस असंवैधानिक गतिविधि का पूर्ण विरोध करता है और सपाक्स समाज के सभी व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के संचालकों से अपील करता है कि भारत बंद के आह्वान को देश हित में पूर्णतः विफल करें। सपाक्स ने सपाक्स समाज से भी अनुरोध किया है कि वह 2 अप्रैल को अधिक खरीदी कर देशहित, न्यायालय के सम्मान तथा अपने हितों की रक्षा करे।सभी दुकान संचालको, से भी निवेदन है की अपने अपने प्रतिष्ठान को चालू रख इनका विरोध करें।
Previous articleकांग्रेस ने दोबारा पोल कर सुषमा स्वराज-चुनौती दी
Next articleमध्यप्रदेश में एफसीआई का पर्चा लीक