शीर्ष अदालत ने संकेत दिया कि वह इसमें शामिल प्रक्रिया पर एक समय सीमा निर्धारित कर सकती है क्योंकि लंबी देरी से लिविंग वसीयत लिखने का पूरा उद्देश्य विफल हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इच्छामृत्यु के लिए निर्धारित प्रक्रिया और दिशानिर्देशों को व्यावहारिक बनाने के लिए सुधार कर सकती है। अदालत इस संबंध में एक समय सीमा तय कर सकती है। इस समय सीमा के भीतर मेडिकल बोर्ड को मरणासन्न रोगी से कृत्रिम जीवन समर्थन प्रणाली को हटाने की रिपोर्ट जमा करनी होगी। पीठ ने कहा कि हम केवल दिशानिर्देशों में सुधार करने पर विचार करने के लिए यहां हैं। हमें अदालत की सीमाओं का भी एहसास होना चाहिए। गौरतलब है कि इस पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और जस्टिस सी टी रविकुमार भी शामिल हैं।
2018 के फैसले में बदलाव के संकेत
इसके साथ ही कोर्ट ने अपने 2018 के फैसले में संसोधन के संकेत दिए हैं| पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार भी शामिल थे, कोर्ट ने कहा कि 2018 के फैसले में मरणासन्न रोगियों की ओ से बनाई गई इच्छा मृत्यु की लिविंग विल में दिशानिर्देशों को निर्धारित करने के लिए ‘थोड़ा सुधार’ की आवश्यकता है ताकि उनके जीवन के अधिकार को अधिक विस्तार मिल सके|
लिविंग विल/एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव के दिशानिर्देशों में संशोधन की है मांग
पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ 2018 में जारी किए गए लिविंग विल/एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव के दिशानिर्देशों में संशोधन की मांग वाली याचिका पर विचार कर रही थी। द इंडियन सोसाइटी फॉर क्रिटिकल केयर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी दातार ने पेश किया कि इस प्रक्रिया में कई हितधारकों की भागीदारी के कारण सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के तहत बनाई गई प्रक्रिया असाध्य हो गई है।
याचिकाकर्ताओं ने दिया ये तर्क
पीठ 2018 के फैसले में संसोधन की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में मरणासन्न रोगियों की लिविंग विल को मान्यता देने की मांग की गई थी| यह ऐसे मरीजों के बारे में है जो इतने गंभीर बीमार हैं कि बता नहीं सकते कि उनका इलाज बंद कर देना चाहिए.
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील अरविंद दातार और प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि तीन चरणों वाली कठिन शर्तों की प्रक्रिया ने पूरे फैसले को निरर्थक बना दिया है, इस पर पीठ ने स्वीकार किया कि प्रक्रिया को सरल बनाने की जरूरत है|
सावधान रहने की जरूरत- कोर्ट
कोर्ट ने कहा, ”हमें इसमें थोड़ा बदलाव करना पड़ सकता है| लेकिन साथ ही हमें बहुत सावधान रहना होगा” पीठ ने इस दौरान सीमाओं का जिक्र करते हुए कहा, “हम न तो चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञ हैं और न ही हमारे पास विधायिका जैसी विशेषज्ञता है| चूंकि हम यहां पहले से निर्धारित दिशा-निर्देशों में सुधार करने के लिए हैं, इसलिए हमें सावधान रहना होगा|
क्या था 2018 का फैसला?
2018 के फैसले के तहत, एक वयस्क व्यक्ति एक लिविंग विल बना सकता है, जिस पर दो प्रमाणित गवाहों की उपस्थिति में हस्ताक्षर हों और संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट की ओर से इसकी पुष्टि की गई हो| यदि वसीयतकर्ता गंभीर रूप से बीमार हो जाता है और लंबे समय तक चिकित्सा उपचार से गुजरता है, जिसके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है तो परिवार के सदस्यों के अनुरोध पर डॉक्टर एक मेडिकल बोर्ड का गठन करेंगे|