वाशिंगटन
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नए साल की शुरूआत पाकिस्तान को दी जा रही सैन्य सहायता रोकने से की है। अमेरिका ने पाकिस्तान की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए हैं। अमेरिका ने आरोप लगाया कि पाक अतंकियों का सुरक्षित पनाहगार बना हुआ है। इसके बाद पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ खुफिया जानकारियों का आदान-प्रदान बंद कर दिया है। अब स्थिति यह है कि पाकिस्तान अमेरिका को ब्लैकमेल करने की स्थिति में जा पहुंचा है। अफगानिस्तान में नियुक्त हजारों सैनिकों को रसद पाकिस्तान के रास्ते ही पहुंचती है। इस तरह देखा जाए तो जब तक अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिक हैं, तब तक अमेरिका की पाक पर निर्भरता बनी रहेगी।
पाक रक्षा मंत्री खुर्रम दस्तगीर ने कहा है कि ऐसे अविश्वास के माहौल में अमेरिका के साथ काम कर पाना संभव नहीं है। हमने आतंकवादियों के खिलाफ संघर्ष लगातार जारी रखा है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने भी कहा कि पाकिस्तान का अमेरिका के साथ गठबंधन खत्म हो चुका है। पाकिस्तान की यह खुली गुस्ताखी अमेरिका को नींद से जगाने के लिए काफी है। जिस पाकिस्तान को अमेरिका ने पिछले 15 सालों में 33 अरब डॉलर से ज्यादा धन दिया, वही पाकिस्तान अब आंखें दिखा रहा है।
पाकिस्तान अमेरिका की कमजोर नस पहचान चुका है। वह यह जानता है कि अफगानिस्तान में हजारों अमेरिकी सैनिक मौजूद हैं। बिना पाकिस्तान की मदद के उन सेनाओं तक रसद पहुंचाना मुमकिन नहीं है। दरअसल कराची से सड़क के रास्ते अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिकी सेना को रसद पहुंचती है। कराची पोर्ट से अफगानिस्तान के जलालाबाद तक यह रसद ट्रकों के जरिए पहुंचती है। पाकिस्तान सात साल पहले भी पाकिस्तान रसद रोकने का काम कर चुका है। सन 2011 में अमेरिकी सील कमांडो ने एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था। जिसके बाद गुस्साए पाकिस्तान ने विरोध में अफगानिस्तान जाने वाली रसद रोक दी थी। लेकिन इस बार अमेरिका ने बहुत कुछ सोचकर ही पाकिस्तान की सात हजार करोड़ रुपये की सैन्य मदद रोकी है।
अमेरिकी प्रशासन ने फैसले के बाद होने वाली तमाम प्रतिक्रियाओं पर विचार करने के बाद ही आर्थिक मदद रोकी है। अब अमेरिका पाकिस्तान के हर एक एक्शन पर नजर रखे हुए हैं। अगर पाकिस्तान इस बार भी रसद रोकने जैसी ब्लैकमेलिंग करता है तो उसके गंभीर नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। अमेरिका के पास रूस, किर्गिस्तान और ईरान के रास्ते रसद भेजने का विकल्प मौजूद है। अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिकी सैनिक और ठिकाने हक्कानी नेटवर्क के निशाने पर हैं। अमेरिका ने पाकिस्तान पर हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया है। साथ ही पाकिस्तान पर तमाम आतंकी संगठनों को पनाह देने का भी आरोप है। अमेरिका का अल्टीमेटम है कि जिन आतंकवादियों की अफगानिस्तान में तलाश है उन्हें पाकिस्तान पनाह दिए हुए है। पाकिस्तान भी इस मुगालते में था कि जब तक अफगानिस्तान में आतंकवादी नेटवर्क मौजूद रहेगा तब तक अमेरिका से डॉलर मिलने में देर नहीं होगी। पाकिस्तान इस तरह अमेरिका के लिए कमजोरी बन गया है।

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