रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा
अदालत ने सरकार से पूछा, क्या विधायक राजा भैइया के खिलाफ आपराधिक मुकदमें वापस लिये हैं

उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने राज्य सरकार (High Court)से पूछा है कि क्या पूर्व कैबिनेट मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया के खिलाफ आपराधिक मुकदमें वापस लिये गये हैं।

अदालत ने कहा कि यदि वापस लिये गये हैं तो वापस लेने का स्पष्ट कारण बताया जाये। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि उचित स्पष्टीकरण नहीं आता तो वह इस प्रकरण में स्वत संज्ञान ले लेगा।

अदालत ने यह भी कहा कि जिस अभियुक्त के खिलाफ कई मुदकमें दर्ज हों उसके खिलाफ उदारतापूर्ण रवैया नहीं अपनाया जा सकता है। मामले की अगली सुनवायी अब 21 जुलाई को होगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति मुनीश्वर नाथ भंडारी एवं न्यायमूर्ति मनीष कुमार की पीठ ने शिव प्रकाश मिश्रा सेनानी की ओर से दायर रिट याचिका पर वीडियों कांफ्रेसिंग से सुनवायी करते हुए पारित किया। याची की ओर से कहा गया कि उसने राजा भइया के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ा था और उसे राजा भइया से अपने जीवन का भय है।

कहा गया कि उसे सुरक्षा मिली हुई थी जिसकी अवधि समाप्त हो रही थी।

ऐसे में पूर्व में दाखिल एक अन्य याचिका पर उच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया था कि वह याची को सुरक्षा प्रदान करने के संबध में उसकी ओर से प्रेषित प्रत्यावेदन को निस्तारित करे।

याची के अधिवक्ता एसएम रैंकवार ने तर्क दिया कि याची के जीवन को खतरा बराबर बना हुआ है किन्तु सरकार उसके सुरक्षा करने की मांग के बावत दिये गये उसके प्रत्यावेदन को निस्तारित ही नहीं कर रही है।

अधिवक्ता ने यह भी कहा कि एक ओर से सरकार याची के प्रत्यावेदन पर निर्णय लेने से बच रही है दूसरी ओर उसने राजा भईया के राजनीतिक रसूख के चलते उनके खिलाफ दर्ज कई आपराधिक मामले वापस ले लिये हैं।

इस पर पीठ ने स्टैंडिग कौंसिल को निर्देश दिया कि वह सरकार से इस बात की जानकारी करके उसे अवगत करायें कि याची के प्रत्यावेदन पर अब तक निर्णय क्यों नहीं लिया गया है। पीठ ने कहा कि यदि सरकार का उत्तर संतोषजनक नहीं आता तो वह अदालती अवमानना के तहत स्वतः संज्ञान ले सकती है।

अदालत ने कहा कि याची की सुरक्षा अगली तिथि तक वापस नहीं ली जायेगी। विदित हो कि राजा भइया प्रतापगढ की कुंडा विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक है।

वह अखिलेश यादव मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री थे लेकिन प्रतापगढ़ में पुलिस उपाधीक्षक जियाउल हक की भीड़ द्वारा हत्या किये जाने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।

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