Jashn e Rahat Grand Mushaira
Jashn e Rahat Grand Mushaira

Nashist, Mushairas- नशिस्त, मुशायरों, मंचों की जब शुरुआत की थी, तो उनके साथ केसरी लकब जुड़ा होता था। बुलंदियों की सीढ़ियां चढ़ने के दौर में उन्होंने Rahat Indori “राहत” को “इंदौरी” बनाया और ये इंदौरी लकब ही सारी दुनिया में घूमता रहा। राहत और इंदौरी का तालमेल ऐसा बना कि इसने ही एक नई पहचान गढ़ दी। न अकेले राहत पहचाने जाते और न अकेले इंदौरी को स्वीकार किया जाता है। आधुनिक ज्ञानदाता गूगल पर भी अगर राहत सर्च किया जाए तो रिजल्ट के तौर इंदौरी जुड़कर ही पेश किया जाएगा और अगर इंदौरी की कोई सर्च हो तो परिणाम राहत के साथ चस्पा होकर सामने आते हैं।

मल्हारगंज, नयापुरा, पाटनीपुरा, मालवा मील से होते हुए श्रीनगर एक्सटेंशन से खजराना का चक्कर लगाते अनूप नगर जा ठहरे राहत के लिए पूरा शहर ही अपना आशियाना बन गया। कामकाजी दौड़ मालवा मील चौराहा के पास स्थित सरोज टाकीज की संकरी गली, साथियों के साथ बैठकों के लिए रानीपुरा की गलियां और ज्ञान गंगा बहाने के लिए पलासिया स्थित इस्लामिया करीमिया कॉलेज के ठिकाने रहे, लेकिन हिंदुस्तान के कमोबेश हर शहर में और दुनिया के लगभग हर देश में अपने फन ओ कलाम का जलवा भी इंदौरी ने राहत बनकर फैलाया।

जितना राहत ने इंदौर को दिया, उससे दस गुना इंदौर अब राहत को मुहब्बत के साथ लौटा रहा है। अपनी दरियादिली, चाहतों और अकीदत का इजहार वह तब भी करते रहे हैं, जब राहत हयात थे। अब राहत नहीं रहे तो चाहतों में कुछ और ज्यादा इजाफा दिखाई देने लगा है। राहत अपने जीवनकाल के आखिरी वक्त में खुद के लिए अपने शहर, अपने लोगों, अपने चाहने वालों की दीवानगी देखने वाले खुशनसीब रहे। इंदौर के अभय प्रशाल में हुए जश्न ए राहत ने उनकी आंखों को खूब भिगोया था। अपनों के प्यार को देखकर राहत की भीगी आंखों पर मशहूर शायर जावेद अख्तर के मुंह से निकला था, कोई शहर अपने शायर के लिए इतना दीवाना हो सकता है, ये देखना बेहद सुखद और अविस्मरणीय लग रहा है।

राहत की मौजूदगी के उस जश्न ए राहत का दूसरा संस्करण इस 17 फरवरी को फिर दिखाई देने वाला है। यूनिवर्सिटी ऑडिटोरियम इसका साक्षी बनने को तैयार है। तैयार राहत के चाहतमंदों का शहर भी है, जिसने प्रोग्राम के पहले अपनी छाती पर दर्जनों फीट की लंबाई चौड़ाई वाले होर्डिंग्स सजा रखे हैं। चौराहा दर चौराहा लोगों को दावत दे रहे जश्न ए राहत के इन पोस्टरों का विधिवत विमोचन किया जाना भी मुशायरों की महफिल का नया सूत्रपात कहा जाने वाला है। दुनियाभर में अपने फन ओ कलाम की पताका ऊंचा रखने वाले कद्दावर शायर इस महफिल ए खास को बुलंदियां देने वाले हैं।

जश्न ए राहत इस मायने भी लंबे अरसे तक याद रखा जाने वाला है कि अब तक देश के किसी शहर ने मुशायरे या कवि सम्मेलन की इस भव्यता को नहीं छुआ है। शहर इंदौर ही नहीं बल्कि आधे प्रदेश में मची इस आयोजन के लिए दीवानगी भी आगे तक याद रखी जाने वाली है। मुशायरे और कवि सम्मेलन की इस नायाब महफिल में शहर की नामवर शख्सियत सत्यनारायण सत्तन की प्रतिभा को भी इंदौर नमन करने वाला है। आमतौर पर एक दूसरे के मुखालिफ खड़े दिखाई देने वाले सियासी पार्टियों के नुमाइंदे भी राहत की मुहब्बत में एक जाजम पर दिखाई देकर एक नई तहरीर पेश करने वाले हैं। अदबी तंजीमें और साहित्यिक संस्थाओं का समागम भी इस आयोजन से एक नए काल का सूत्रपात करेगा।

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