Yaad e Rahat Mushaira
Yaad e Rahat Mushaira Indore

काफिला मुहब्बत का ऐसा चला, अंधेरे में भी राहत के लिए बैठे रहे श्रोता… इंदौर ने दिखाई अपने महबूब शायर के लिए दिवानगी

MP News-ये शायद इंदौर में ही मुमकिन हो सकता था… इंदौर के बाशिंदों (Indore Mushaira) के जज्बे से ही संभव हो सकता था…! जश्न ए राहत (Jashn e Rahat) से शुरू हुआ सिलसिला याद ए राहत तक चला। ऐसा चला कि मुशायरों की दुनिया में, मंचों के इतिहास में पहली बार वह हुआ, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

दुनिया भर में अपने शेर ओ कलाम और खास अंदाज के चलते मुशायरा महफिलों के शिखर पर पहुंचे डॉ राहत इंदौरी (Dr. Rahat Indori) को याद करते हुए हुआ एक मुशायरा अब आने वाले आयोजन की दलील भी होगा और इसमें शामिल श्रोताओं के जज्बे के साथ याद भी किया जाएगा।

17 फरवरी की शाम शहर ए इंदौर ने अपने महबूब शायर डॉ राहत इंदौरी की याद में एक ऑल इंडिया मुशायरा (All India Mushaira) और कवि सम्मेलन का आयोजन किया। कार्यक्रम को लेकर उत्सुकता जुनून की हद तक तभी तब्दील होना शुरू हो गई थी, जब इसका ऐलान किया गया। कार्यक्रम के पोस्टर का विधिवत विमोचन किया जाना एक नई परंपरा की शुरुआत के रूप में गिना गया। शहर के सबसे व्यस्ततम रास्ते शास्त्री ब्रिज पर कई दर्जन फीट लंबे चौड़े पोस्टर ने भी इस महफिल ए मुशायरा के लिए लोगों की दीवानगी बढ़ाने का काम किया। नतीजा यह हुआ कि करीब 1600 लोगों की सिटिंग कैपिसिटी वाले देवी अहिल्या विश्वविद्यालय ऑडिटोरियम में पहुंचने वालों की तादाद दोगुनी से भी ज्यादा हो गई। हॉल नहीं तो बाहर लगे स्क्रीन पर सुनेंगे, की जिद के साथ पहुंचे लोगों में से अधिकांश ने हॉल में घुसकर मजमा देखने की हठ भी कर डाली, जिसको जहां जगह मिली वहीं खुद को एडजस्ट करके महफिल का हिस्सा बन गया।

फिर रचा गया इतिहास

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देवी अहिल्या विश्वविद्यालय ऑडिटोरियम में खचाखच भरे श्रोताओं ने जब अपने महबूब शायरों को सुनना शुरू ही किया था। पहले शायर सतलज राहत की आमद के साथ आंख मिचौली करती हॉल की बिजली ने जल्दी ही कार्यक्रम का साथ छोड़ दिया। मंच पर झिलमिलाती “शमा” और ऑडिटोरियम में मौजूद बैक अप सिस्टम से चलते माइक के अलावा हर तरफ अंधेरे का साम्राज्य छा गया। शायर बदलते रहे, कलाम बिखरते रहे, गर्मी का आलम सहते हुए इंदौरी श्रोता अपने महबूब शायर डॉ राहत इंदौरी की मुहब्बत को जिंदा किए बैठे रहे। अब लाइट दुरुस्त होगी, अब व्यवस्था बहाल होगी, अब कुछ मजा बढ़ेगा, की आस में मुशायरा अपने चरम पर पहुंच गया। रात करीब डेढ़ बजे तक लोगों ने अभाव भरे हालात में ही इस महफिल को उरूज तक पहुंचा दिया। मंच पर मौजूद शायरों ने शहर की इस सहनशीलता को सराहा भी और इस याद ए राहत को एक नायाब और ऐतिहासिक मुशायरा करार दिया। उन्होंने कहा कि अपने शायर के लिए इस तरह की दीवानगी की उम्मीद शहर इंदौर से ही की जा सकती है। उन्होंने यह भी कि इस आयोजन को याद ए राहत की बजाए जश्न ए राहत दिया जाना चाहिए था, क्योंकि राहत सिर्फ हमारी आंखों से ओझल हुए हैं, लेकिन सभी के दिलों में हमेशा जिंदा रहने वाले हैं।

कभी होती थी मुशायरों की प्रथा

घुप्प अंधेरे में सजी इस यादगार महफिल पर मशहूर शायर मंजर भोपाली कहते हैं कि मुशायरों के शुरुआती दौर में इस तरह के रिवाज हुआ करते थे। दिल्ली से हुई शुरुआत के दौर में जब मिर्जा गालिब और उनके समकालीन शायर महफिल सजाते तो एक शमा रौशन की जाती थी। ये शमा जिसके सामने पहुंचती थी, उस शायर को अपना कलाम सुनाना होता था। मंजर भोपाली कहते हैं कि करीब 40 बरस से भी ज्यादा के मुशायरों की महफिल के जीवन में ऐसा आयोजन नहीं देखा और न कहीं सुना कि अंधेरे में बैठकर लोग सुकून से शायरों का कलाम भी सुन रहे हों, उससे जुड़ भी रहे हों, दाद देते हुए मुकर्रर और इरशाद की आवाज़ें भी बुलंद कर रहे हों।

4 साल पहले दिखी थी दीवानगी

करीब चार साल पहले जब डॉ राहत इंदौरी सबके बीच थे। इंदौर के अभय प्रशाल में जश्न ए राहत की महफिल सजी थी। सारा शहर अपने महबूब शायर के इस जश्न में शामिल होने के लिए उतावला हो गया था। शहर में मौजूद ऑडिटोरियम की बैठक क्षमता में सबसे आगे माने जाने इस ऑडिटोरियम में लोगों की मौजूदगी का आलम यह हुआ था कि कार्यक्रम स्थल के अंदर ही नहीं बाहर भी दूर दूर तक कदम रखने की जगह नहीं थी। अपने लिए शहर की इस दीवानगी को देखकर राहत की आंखों से गंगा जमना बह निकली थी, गला रूंध गया और हाथ जोड़कर सबका शुक्रिया अदा करने के लिए उन्हें अल्फाज की कमी पड़ गई थी। मुशायरे की इस महफिल में शामिल हुए मेहमान शायर किसी शहर की अपने शायर के लिए दीवानगी देखकर अभिभूत होकर वापस लौटे थे।

उर्दू के मंच पर हिंदी का सम्मान

याद ए राहत की आयोजन संस्था काफिला ए मुहब्बत ने डॉ राहत इंदौरी के समकालीन और उन्हीं के शहर के हिंदी कवि सत्यनारायण सत्तन को याद ए राहत सम्मान से नवाजा। स्मृति चिन्ह और नगद राशि के साथ किया गया ये सम्मान भी एक नई शुरुआत माना जा रहा है। संभवतः यह पहला मौका है जब किसी उर्दू मंच से हिंदी कवि को सम्मानित किया गया। अपने इस सम्मान से गदगद हुए सत्तन ने कहा कि काफिला ए मुहब्बत महज एक नाम नहीं है, बल्कि इस संस्था ने अपने नाम को सार्थक भी कर दिखाया है।

फिर जुटेंगे, फिर सजाएंगे महफिल

तकनीकी कारणों से हुई अव्यवस्था और इसके बीच लोगों के धैर्य, सहनशीलता, जुनून को देखकर मंजर भोपाली ने ऐलान किया कि जल्दी ही ऐसी महफिल दोबारा सजाई जाएगी। जिसके लिए इस महफिल में मौजूद शायर बिना पारिश्रमिक लिए हाजिरी देंगे। उनके इस प्रस्ताव पर सभी शायरों ने सहमति जताई। आयोजन संस्था के अम्मार अंसारी, नाजिम अली, अकरम दस्तक, मजहर खान और साथियों की मेहनत के अलावा कार्यक्रम सूत्रधार जाहिद खान के प्रयासों को भी सराहा गया।

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