Number two in population khabar aaj ki
भारत में मुस्लिम प्रतिनिधित्व की कमी एक चिंताजनक घटना है। यह देश की साझा संस्कृति और लोकतंत्र के लिए खतरा है। इस कमी को दूर करने के लिए, राजनीतिक दलों को मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव में अधिक मौका देना चाहिए।

भोपाल। देश की आबादी के लिहाज से मुस्लिम समुदाय दूसरे नंबर पर है। कई राज्यों में इनकी मौजूदगी का आंकड़ा बड़ा है। लेकिन देश की आजादी के बाद से संभवतः यह पहला मौका है, जब केंद्र सरकार से लेकर करीब 15 राज्यों की सरकारों में मुस्लिम समुदाय से एक भी मंत्री शामिल नहीं है। हाल में हुए कुछ प्रदेशों के विधानसभा चुनावों के बाद यहां की भाजपा सरकारों में भी इसके लिए कोई गुंजाइश दिखाई नही दे रही है।

देश के इतिहास में पहली बार केंद्र समेत 15 राज्यों की सरकार में एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं होंगे। इनमें असम, गुजरात और तेलंगाना जैसे प्रमुख राज्य भी शामिल हैं, जहां मुसलमानों की आबादी 45 लाख से ज्यादा है। देश में मुसलमानों की आबादी करीब 14 प्रतिशत है, जो हिंदुओं के बाद सबसे ज्यादा है। हालिया 5 राज्यों के चुनाव के बाद सरकार गठन की जो प्रक्रिया चल रही है, उसमें भी मुस्लिम हिस्सेदारी सुनिश्चित होती नहीं दिख रही है। कांग्रेस शासित तेलंगाना में कैबिनेट विस्तार हो चुका है। तेलंगाना में पार्टी ने सारे समीकरण साधे लेकिन एक भी मुसलमान को मंत्री नहीं बनाया।
बीजेपी के हिस्से आई छत्तीसगढ़ विधानसभा में भी इस तरह का कोई प्रावधान नहीं हो पाया है। इसके बाद अब बीजेपी शासित मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी मुसलमानों के मंत्री बनने की संभावना शून्य है क्योंकि तीनों ही राज्यों में बीजेपी के सिंबल पर एक भी मुस्लिम विधायक जीतकर सदन नहीं पहुंचा है।

केंद्र भी खाली

भाजपा की केंद्र सरकार के साथ कभी एक साथ दो मुस्लिम मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन हुआ करते थे। लेकिन अब केंद्र सरकार में पहली बार एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है।
यहां तक कि अल्पसंख्यक मंत्रालय की कमान भी स्मृति ईरानी के पास है, जो हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखती हैं।

रास्ते ये भी आसान नहीं

मप्र में पिछली चार बार से भाजपा सरकार के दौरान कोई भी मुस्लिम मंत्री नहीं रहा है। कारण यह है कि भाजपा ने लगातार दो चुनाव में मुस्लिम प्रत्याशियों को मौका दिया, लेकिन दोनों ही जीत के करीब नहीं पहुंच पाए। इधर मुस्लिम समुदाय से जुड़े संस्थानों मप्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग, मप्र वक्फ बोर्ड, राज्य हज कमेटी, मप्र मदरसा बोर्ड आदि में भी पिछले कई सालों से कमोबेश ज्यादातर संस्थाएं खाली ही पड़ी हैं। जहां संवैधानिक संस्था अल्पसंखयक आयोग लंबे समय से खाली है, वहीं जिन संस्थाओं में नियुक्ति की गई हैं, वे अब तक विवादों में घिरे हुए हैं।

संगठन में भी हाशिए पर

भाजपा से जुड़े मुस्लिम नेताओं को सीधे तौर पर नेतृत्व तो मिल नहीं रहा है। साथ ही उन्हें संगठन में महज मोर्चा और मंच तक ही सीमित रखा गया है। इक्का दुक्का नेताओं को छोड़कर भाजपा के सभी नेताओं को अल्पसंख्यक मोर्चा में ही कैद कर दिया गया है।

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