Petrol and diesel rates will cut down after a lockdown ?
Petrol and diesel rates will cut down after a lockdown ?

Petrol and Diesel Rates- कच्चे तेल के दाम में ऐतिहासिक गिरावट के बाद अब चर्चा का विषय यह बन गया है कि क्या भारत में इसका कोई फायदा मिलेगा? लॉकडाउन के बीच तो उम्मीद कम है, लेकिन क्या इसके बाद पेट्रोलियम कंपनियां पेट्रोल-डीजल के दाम में भारी कटौती करने को तैयार होंगी, यह देखने वाली बात होगी।

सबसे पहले यह जान लें कि भारत में जो कच्चा तेल आता है उसकी लागत कितनी पड़ रही है और उसमें कितनी गिरावट आई है। असल में अमेरिकी कच्चे तेल की कीमत घटने का भारत पर खास असर नहीं पड़ता है, लेकिन इसके असर से हर तरह का कच्चा तेल टूट रहा है।

भारत के लिए अहम है इंडियन बास्केट का रेट जो ब्रेंट क्रूड और खाड़ी देशों के कच्चे तेल पर निर्भर होता है।

इंडियन बास्केट के क्रूड का रेट मार्च में 32 डॉलर के आसपास था और अभी करीब 20 डॉलर प्रति बैरल चल रहा है। ऐसा माना जाता है कि एक डॉलर प्रति बैरल कीमत में गिरावट से पेट्रोल-डीजल के भाव में 50 पैसे लीटर की कटौती की जा सकती है।

यानी एक महीने में अगर इंडियन बास्केट के क्रूड में प्रति बैरल 12 डॉलर (12 dollar)की गिरावट आई है तो इस लिहाज से पेट्रोल-डीजल की कीमत में 6 रुपये प्रति लीटर तक की कटौती होनी चाहिए। लेकिन तेल का खेल इतना आसान नहीं है। इसको समझने के बाद ही कोई उम्मीद करना मुनासिब है।
इंडियन बास्केट के क्रूड का रेट मार्च में 32 डॉलर के आसपास था और अभी करीब 20 डॉलर प्रति बैरल चल रहा है।

ऐसा माना जाता है कि एक डॉलर प्रति बैरल कीमत में गिरावट से पेट्रोल-डीजल के भाव में 50 पैसे लीटर की कटौती की जा सकती है। यानी एक महीने में अगर इंडियन बास्केट के क्रूड में प्रति बैरल 12 डॉलर की गिरावट आई है तो इस लिहाज से पेट्रोल-डीजल की कीमत में 6 रुपये प्रति लीटर तक की कटौती होनी चाहिए। लेकिन तेल का खेल इतना आसान नहीं है।

इसको समझने के बाद ही कोई उम्मीद करना मुनासिब है।

पेट्रो​लियम कंपनियां कीमत के मामले में स्वतंत्र हैं और हर दिन समीक्षा करती हैं। लेकिन पिछले 36 दिनों से कीमत में कोई बदलाव नहीं आया है।

जनवरी से मार्च में तो कच्चे तेल की कीमत करीब आधी हो गई, लेकिन दाम घटाने की जगह सरकार ने सरकार ने गत 14 मार्च को पेट्रोल-डीजल पर 3 रुपये प्रति लीटर का एक्साइज बढ़ा दिया।

पेट्रोल-डीजल की बेसिक कीमत घटती जा रही है, लेकिन सरकार टैक्स बढ़ाती जा रही है। जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल बेहद सस्ता है तो तेल कंपनियां अपने पुराने नुकसान की भरपाई कर सकती हैं, उधर सरकार के लिए भी पेट्रोलियम अर्थव्यवस्था के संकट के दौर में राजस्व बढ़ाने का अच्छा जरिया है।

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