Risk of diabetes after corona recovery
डाॅ अशोक झिंगन, चेयरमैन, दिल्ली डायबिटीज रिसर्च सेंटर, नई दिल्ली

डाॅ अशोक झिंगन, चेयरमैन, दिल्ली डायबिटीज रिसर्च सेंटर, नई दिल्ली

सारी दुनिया के लिए कोरोना नया वायरस हैं। यह समय के साथ अपना रूप भी बदल रहा है और मानव शरीर में पुहंच कर विभिन्न अंगों को प्रभावित करता है। जिसकी वजह से संक्रमण और रिकवर हुए मरीजों के स्वास्थ्य को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। वायरस को समझनेे और संक्रमित मरीजों के उपचार के लिए लगातार दुनिया भर में शोध कार्य चल रहे हैं। दुर्भाग्यवश अभी तक उपचार के लिए कोई सटीक दवाई या वैक्सीन नहीं बनी है।

हाल ही में कोविड को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त शोध के परिणाम चैंकाने वाले हैं

कि कोविड-19 बीमारी स्वस्थ व्यक्ति को रिकवरी के बाद डायबिटीज का शिकार बना सकती है। यह शोध जर्मनी की हेल्सटीन, आस्ट्रेलिया की मोनाश और ब्रिटेन की ग्लासगो और बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से की। यहां कई ऐसे कोरोना मरीजों का इलाज हुआ, संक्रमण से पहले जिनका ब्लड शूगर लेवल सामान्य था। लेकिन रिकवर होने के बाद शरीर में इंसुलिन बनना कम हो गया, शूगर लेवल बहुत बढ़ गया और वे डायबिटीज का शिकार हो गए।जबकि पहले हुई शोधों के नतीजों में यह बात सामने आई थी कि हाई रिस्क श्रेणी में आने वाले लोग कोरोना वायरस की चपेट में ज्यादा आते हैं। जो मूलतः पहले से ही किसी आनुवांशिक बीमारीया डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, सांस की तकलीफ, हार्ट प्राॅब्लम, मोटापा जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। कोरोना संक्रमण से इनके श्वसन तंत्र, फेफडे, किडनी, लिवर, पैनक्रियाज, हृदय जैसे अंगों को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है।

इनमें भी डायबिटीज के मरीजों को कोरोना वायरस से संक्रमित होने और डैथ-रेट ज्यादा होने की संभावना रहती है।

इम्यूनिटी कमजोर होने की वजह से इनके शरीर में वायरस बहुत तेजी से संक्रमण फैलाता है।

दवाओं का असर धीरे होने की वजह से डायबिटीज के मरीजों के लिए कोरोना संक्रमण जानलेवा

साबित होता है। स्वस्थ व्यक्ति की अपेक्षा डायबिटिक मरीजो को कोविड संक्रमण 3-4 गुना ज्यादा

होता है। इसी तरह नाॅर्मल डैथ-रेट जहां 2.3 प्रतिशत है, वहीं डायबिटीज की वजह से मरने वालों का

प्रतिशत 7.3 प्रतिशत है।

क्या है कारण-कोविड संक्रमण प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पैनक्रियाज पर असर करता है।

पैनक्रियाज के इंसुलिन बनाने वाले बीटा सेल्स को डैमेज कर देता है और शरीर में शूगर लेवल को

बढ़ा देता है। कोविड से पहले जिन्हें डायबिटीज नहीं थी, ऐसे 5-8 प्रतिशत लोगों के अंदर

डायबिटीज की संभावना अधिक हो जाती है। कोविड से रिकवर होने के बाद इन लोगों को

डायबिटीज के लक्षण और इससे जुड़ी समस्याएं होनी शुरू हो जाती हैं।

कोरोना वायरस शरीर में मौजूद एसीई-2 रिसेप्टर्स के माध्यम से विभिन्न अंगों के सेल्स पर अटैक करता है।

ये रिसेप्टर्सः फेफड़ो, पैनक्रियाज, किडनी, लिवर, हृदय में ज्यादा मात्रा में होते हैं। इन अंगों पर अटैक करने से उनकी कार्यप्रणली को विकृत या बाधित कर देता है। इससे शरीर के अंदर सुरक्षा-तंत्र गड़बड़ा जाता है जिसे साइटोकिन सिंड्रोम (बलजवापदम ेजवतउ) कहा जाता है। रेस्पेरेटरी सिंड्रोम हो जाता है जिसकी वजह से रेस्पेरेटरी सिस्टम फैल्योर हो जाता है, मरीज की डैथ भी हो जाती है।

कोविड संक्रमण प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पैनक्रियाज पर असर करता है। पैनक्रियाज के बीटा सेल्स पर अटैक होने पर इंसुलिन बनाने वाले सेल्स डैमेज हो जाते हैं और उसके खिलाफ एंटी बाॅडीज बन जाती हैं। इसकी वजह से पैनक्रियाज में ग्लूकोज को ऊर्जा में बदलने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है और इंसुलिन बनना बंद हो जाती है। मरीज के शरीर में शूगर लेवल बढ़ जाता है, उनमें बार-बार

पेशाब जाना, मुंह सूखना जैसे डायबिटीज के लक्षण उभरने लगते हैं।

कोविड से पहले जिन्हें डायबिटीज नहीं थी,

ऐसे 5-8 प्रतिशत लोगों के अंदर डायबिटीज की संभावना अधिक हो जाती है। कोविड से रिकवर होने के बाद इन लोगों को डायबिटीज के लक्षण और इससे जुड़ी समस्याएं होनी शुरू हो जाती हैं। सामान्य व्यक्ति खासकर 14-15 साल के बच्चे भी टाइप-1 डायबिटीज की चपेट में आ जाते हैं। डायबिटीज के 90 प्रतिशत लोगों को टाइप-2 डायबिटीज होती है। उनका शूगर लेवल अगर नाॅर्मल चल रहा हो, कोविड संक्रमण से शूगर लेवल शूटअप होकर 400-600 मिग्रा तक पहुंच सकता है। शूगर ज्यादा होने पर कोविड, निमोनिया, मल्टीपल आॅर्गन फैल्योर होने की समस्याएं हो सकती हैं जैसे- आंखों में डायबिटिक रेटिनोपैथी, ब्रेन की आर्टरीज पर असर पड़ने सेे स्ट्रोक या पैरालिसिस,किडनी फैल्योर, साइलेंट हार्ट अटैक, डायबिटिक फुट, फ्रोजन शोल्डर, दांतों और मसूड़ों में जिंजिवाइटिस या पेरियोडोन्टिक होने का खतरा रहता है।

कैसे होती है पहचान- कोविड से रिकवर होने के बाद अगर उनमें ऐसे लक्षण मिलें तो उन्हें सचेत होना जरूरी है-पेशाब बार-बार जाना, प्यास अधिक लगना। ऐसे में उन्हें बिना देर किए डाॅक्टर को कंसल्ट करना चाहिए और दवाई लेनी चाहिए।सेल्फ मानिटरिंग भी है संभव- मरीज ग्लूकोमीटर की सहायता से बाडी ग्लूकोज की रेगुलर सेल्फ मानिटरिंग भी कर सकते हैं। रेगुलर मानिटर करने पर शूगर लेवल में आए उतार-चढ़ाव के हिसाब से मेडिसिन के डोज को कम-ज्यादा कर सकते हैं। जिनकी डायबिटीज मेडिसिन से कंट्रोल में है, उन्हें यह टेस्ट सप्ताह में एक बार करना पड़ता है, जबकि इंसुलिन लेने वाले मरीज को रोजाना टेस्ट करना पड़ता है।

ऽ फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज (एफपीजी) टेस्ट- रात को 8 घंटे के बाद और नाश्ते से पहले फास्टिंगटेस्ट किया जाता है। ब्लड शूगर 100 मिग्रा से कम होने पर नाॅर्मल और 125-130 मिग्रा होने पर डायबिटीज होती है।

ऽ ओरल ग्लूकोज टालरेंस टेस्ट (ओजीटीटी)- यह टेस्ट खाना खाने के दो घंटे बाद किया जाता है।इसमें ब्लड शूगर 140 मिग्रा से कम हो तो नाॅर्मल है और शूगर लेवल 170-200 मिग्रा के बीच होनेपर डायबिटीज की पुष्टि होती है।

केसे करें बचाव- कोरोना संक्रमण के बाद जिन लोगों को डायबिटीज डायगनोज होती है।

वे अपने लाइफ स्टाइल में बदलाव लाकर, नियमित रूप् से एक्सरसाइज करने और हेल्दी डाइट

लेने से डायबिटीज के रिस्क को 50 प्रतिशत कम कर सकते हैं। और 50 प्रतिशत रिस्क समुचित

इलाज करने और डाॅक्टर की सलाह से ली जाने वाली दवाइयों के नियमित सेवन से कम किया जा

सकता है।

अगर आपकी शूगर लगातार बढ़ रही है, तो डाक्टर को कंसल्ट कर मेडिसिन रेगुलर लें।

अगर शूगर कंट्रोल मे नहीं आ पा रही होे, तो डाॅक्टर की सलाह पर दिन में 2-3 बार इंसुलिन इंजेक्शन लें। हर हालत में अपनी शूगर को कंट्रोल में रखें। घर पर नियमित रूप् से शूगर चैक करते रहें। कोरोना काल में एंग्जाइटी और भययुक्त वातावरण की वजह से मरीज में स्ट्रेस हार्मोन ज्यादा बढ़ जाते हैं। जिन पर एक्सरसाइज, व्यायाम या मेडिटेशन से कंट्रोल किया जा सकता है। लेकिन आज के माहौल में बाहर जाकर एक्सरसाइज करना रिस्की है। इसलिए इन्हें यथासंभव घर पर ही कर सकते हैं। स्टेंडिंग साइकिल सुबह-शाम 20-20 मिनट चला सकते हैं। स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज कर सकते हैं। घर का काम करें। फिजीकल एक्सरसाइज जितना करेंगे, वजन कंट्रोल में रहेगा, शूगर बढ़ने की संभावना कम होगी। नींद अच्छी आएगी जिससे एंग्जाइटी या स्ट्रेस हार्मोन कंट्रोल में रहेंगे।

हेल्दी डाइट खाएं।

वसायुक्त आहार से परहेज करें। ताजे फल-सब्जियां भरपूर मात्रा में लें। कम वसा वाला दूध और

दूध से बने पदार्थ अपनी डाइट में शामिल करें। पानी या तरल पदार्थ ज्यादा से ज्यादा लें। हर तरह

के इंफेक्शन से खुद को बचाकर रखें। कोरोना इंफेक्शन से बचने के पूरी एहतियात बरतें-भीड़ में न

जाएं, लोगों से मिलने से बच कर रहें, बाहर ग्लवस पहन कर जाएं, सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क का

उपयोग जरूर करें, अपने मुुंह, नाक या आंखों पर बार-बार हाथ लगाने से बचें, 6 फुट की दूरी बना

कर रखें, नियमित रूप् से हाथ धोएं, बाहर हैंड सैनेटाइजर का उपयोग करें।

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