Alok Verma

नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी के फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में आलोक वर्मा को हटाने से पहले सिलेक्ट कमेटी से सहमति लेनी चाहिए थी। जिस तरह सीवीसी ने आलोक वर्मा को हटाया, वह असंवैधानिक है। यह फैसला केंद्र सरकार के लिए बड़ा झटका है। चीफ जस्टिस के छुट्टी पर होने के कारण जस्टिस केएन जोसेफ और जस्टिस एसके कौल की बेंच यहा फैसला सुनाया।

सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा ने पूर्व जॉइंट डायरेक्टर राकेश अस्थाना के साथ विवाद के चलते शक्तियां छीने जाने और छुट्टी पर भेजने के खिलाफ याचिका दायर की थी। अस्थाना और वर्मा के बीच रिश्वत को लेकर छिड़ी जंग के सार्वजनिक होने के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया था। उल्लेखनीय है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 6 दिसंबर को मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सीवीसी से जवाब दाखिल करने को कहा था।

सीवीसी ने दलील दी थी कि स्थिति विशेष परिस्थिति वाली थी, इसी कारण यह फैसला हुआ है। सीबीआई डायरेक्टर के वकील फली एस नरीमन ने दलील दी थी कि सीबीआई डायरेक्टर के मामले को व्यापक तौर पर देखा जाना चाहिए। एनजीओ के वकील दुष्यंत दवे ने कहा था कि विनीत नारायण केस में सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्देश जारी किया था उसके तहत प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस की हाई पावर कमेटी होगी और सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति करेगी साथ ही उनकी मंजूरी से ही ट्रांसफर होगा।


वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में 23 अक्टूबर, 2018 को याचिका दाखिल कर तीन आदेशों को खारिज करने की मांग की थी।

इनमें से एक आदेश केंद्रीय सतर्कता आयोग और दो केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने जारी किए थे। वर्मा ने याचिका में कहा था कि इस फैसले में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने अपने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया है। वर्मा ने कहा था कि इन फैसलों में अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन किया गया।

वर्मा का मानना था कि अधिकारियों के इंडक्शन को लेकर उनके द्वारा की गई सिफारिश को अस्थाना ने बिगाड़ दिया। वर्मा ने आरोप लगाया था कि स्टर्लिंग बायोटेक घोटाले में अस्थाना की भूमिका के कारण सीबीआई भी घेरे में आ गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी राकेश अस्थाना को क्लीन चिट दे दी।

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